Swati Kumari

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इस रिश्ते को क्या नाम दूं

            इस रिश्ते को क्या नाम दूं (भाग 12)

कुछ दूर आगे बढ़ने के बाद आर्थिक अचानक गाड़ी रोकता है। वैदेही को इस बात से बिल्कुल आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि उसे अच्छी तरह पता था आर्थिक जरूर कुछ ना कुछ वैसा करेगा जिससे उसके दिल को ठेस पहुँचे।

"कमाल है... घर से निकल गई तुम लेकिन तुम ने एक बार भी गिरगिराते हुए नहीं यह कहा नहीं कि मैं तुम्हारे भाई को छोड़ दूं।"

"क्योंकि मुझे पता, आप भैय्या को छोड़ चुके होगें।"

"अच्छा इतना यकीन है मेरे ऊपर"

वैदेही कुछ नहीं कहती वह सीधा सामने की तरफ देख रही थी।

"तुम ने अब तक पूछा नहीं मैं यहां गाड़ी क्यों रोका?",कुछ देर बाद आर्थिक कहता है

"इसमें पूछना क्या मेरी खुशी के लिए तो आपने रोका नहीं होगा, जरूर आपके दिमाग में कोई ना कोई खुराफात चल रहा है।"

"वाओ आई एम इंप्रेस... बहुत जल्दी जान गई तुम मुझे... वैसे गाड़ी से बाहर आओ।"

वैदेही का मन घबड़ाने लगा उसे लगा शायद आर्थिक उसे बीच रास्ते में छोड़कर चला जाएगा इसलिए वह मुँह फेर लेती है।

"हेल्लो... मैंने कुछ कहा है तुम से",आर्थिक वैदेही के कान के पास चुटकी बजाते हुए

"हाँ मैंने नहीं सुना..आपने जो भी कहा।",वैदेही दांत पीसकर कहती है

"उफ्फ्फ इसमें भी नाटक, ठीक है योर डिसीजन..",कहते हुए आर्थिक गाड़ी से बाहर आता और दूसरी तरफ का दरवाजा खोलते हुए वह जबर्दस्ती खीचकर वैदेही को गाड़ी से बाहर निकालता है।

"पागल हो गए हैं आप.."

"मैं कितना बड़ा पागल हूँ यह तुम्हें शादी की पहली रात ही पता चल गया होगा, बार-बार बताने की जरुरत मैं नहीं समझता।"

वैदेही आर्थिक को घूरती है फिर हाथ बांधकर मुँह फेरकर वह खड़ी हो जाती है।

कुछ देर बाद आर्थिक अपने हाथों को रगड़ते हुए कहता है "हल्की-हल्की ठंड लग रही है, रूको मैं अभी आग का इंतजाम करता हूँ, पर यहाँ तो कोई जलावन दिख ही नहीं रहा, अरे! हाँ याद आया एक चीज है मेरे पास बिल्कुल जलाने लायक।",कहते हुए वह अपनी जेब से दो हजार का नोट निकालता है जो कि वैदेही के माता पिता ने शगुन के रूप में दिया था।

"प..प..पागल.हो गए हैं आप",वैदेही चौकते हुए कहती है और लपककर उसके हाथ से वह नोट छीनना चाहती है

"हाँ वो तो मैं हमेशा से हूँ।",कहते हुए आर्थिक अपनी जेब से लाइटर निकालता है और उसे जलाता है

वैदेही नोट की तरफ लपकते हुए कहती है "नहीं.. ऐसा मत करिये प्लीज... पापा ने दिया है आपको, कम से कम उनका तो लिहाज करें आप, यह उनका आशीर्वाद है।"

"तुम देखते जाओ, अभी तो केवल नोट जला रहा हूँ एक-एक करके तुम्हारी पूरी फैमिली इसी आग में जलेगी।",इतना कहते हुए आर्थिक नोट में आग लगाते हुए उसे हवा में उड़ा देता है वैदेही दौड़कर उस नोट को पकड़ना चाहती है। जब तक नोट उसके हाथ लगी वह आधी जल चुकी थी और वैदेही का हाथ भी थोड़़ा बहुत जल गया। वह वहीं बीच सड़क पर ही फूटकर रोने लगी। आर्थिक वहीं गाड़ी के बोनट पर बैठकर सिगरेट की लम्बी कश भरने लगा। उसे वैदेही को रोता देख बहुत मजा आ रहा था उसके चेहरे की मुस्कान बता रही थी वह वैदेही को रोता देख कितना खुश है।

कुछ देर बाद आर्थिक जले हुए सिगरेट को जमीन पर फेकता और उसपर पाँव रखकर उसे बुझाते हुए कहता है"सुनो.. बहुत हो गई नौटंकी जिसे जलना था वह जल गया, चुपचाप आकर गाड़ी में बैठो।"

वैदेही आर्थिक को कठोर नजरों से देखते हुए कहती है"मुझे कहीं नहीं जाना..."

आर्थिक अपना सिर खुजलाते हुए कहता है "देखो मेरे पास फालतू वक़्त नहीं है जो मैं तुम्हें यहां बैठकर मनाऊं, अगर घर चलना है तो चुपचाप आकर गाड़ी में बैठो।"

"एक बार कहा ना मुझे नहीं जाना।",वैदेही चिखते हुए कहती है

"फाइनल डिसीजन?"

"हाँ फाइनल डिसीजन.."

"ओके... एण्ड थैंक्यू वैसे भी मेरा बिल्कुल भी मन नहीं था तुम्हें अपने घर ले जाने का"

"आपको जरा भी शर्म नहीं आती है ना, बड़ो का लिहाज, उनका प्यार, उनका आशीर्वाद आपके लिए कुछ भी नहीं है।"

"नहीं.. और मुझे पता भी नहीं करना समझी, तुम तो ऐसे रो रही है जैसे मैंने नोट नहीं तुम्हारे बाप को जला दिया हो, और हाँ एक बात याद रखना... दूबारा मुझे पलटकर जवाब देने से पहले सोच लेना तुम और तुम्हारी फैमिली मेरे मुठ्ठी में है।",इतना कहते हुए वह गाड़ी में जाकर बैठता है उसने थोड़़ी देर तक वैदेही का इंतजार किया जब वैदेही आकर गाड़ी में नहीं बैठी तो वह गाड़ी स्टाट करता है और बीच सड़क पर ही वैदेही को छोड़कर चला जाता है।

वैदेही झट से उठकर "आप मुझे छोड़कर नहीं जा सकते, दादी जरूर आप से मेरे बारे में पूछेगी। आप नहीं जा सकते..."

आर्थिक गाड़ी रोकता है और खिड़की से बाहर अपना सिर बाहर निकालकर कहता है "तुम सोच भी नहीं सकती मैं क्या-क्या कर सकता हूँ।",और वह वहाँ से आगे बढ़ गया

वैदेही रोते हुए बुदबुदाती है "क्या करूँ अब मैं, घर भी लौट कर नहीं जा सकती और वहाँ इनके घर भी नहीं क्योंकि वहाँ का रास्ता मुझे मालूम ही नहीं, अगर अॉटो भी करती हूँ तो मेरे पास रूपये नहीं हैं। हे! भगवान इस जल्लाद से क्यों शादी करवाई आपने...",इतना बुदबुदाते हुए वह बीच सड़क से उठी और सड़क के दोनों तरफ देखने लगी शायद उसे कोई मदद मिल जाए।

अचानक आसमान में बादल छाने लगा मौसम में नमी आ गई, हवाओं में ठंडापन आ गया, अचानक ही बिजली छिटकने लगी। जिस वजह से लाइट चली गई। सड़क किनारे पोल पर जल रहे बल्ब भी बुझ गया, चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा दिख रहा था शुक्रर है वैदेही के पास उसका फोन था वह अपने फोन का टॉर्च जलाते हुए कहती है।
"अब आपको कौन सी परीक्षा लेनी है भगवान, एक तो वो दुष्ट इंसान बीच सड़क पर छोड़ गया अब क्या आप चाहते हैं कि मैं जंगली जानवरों का भोजन बन जाऊँ, आपको दुश्मनी क्या है मुझसे.. सारे संसार का गम आपने मेरे ही नाम लिखा है क्या...",वैदेही आसमान की तरफ देखते हुए कहती है तभी उसके फोन की घंटी बजी उसने फोन की स्क्रीन पर सागर नाम आ रहा था। एक पल के लिए वैदेही का दिल किया क्यो ना वह सागर को यहाँ बुला ले और कहीं बहुत दूर चली जाए अब तो उसे यह भी पता था सागर उसे कितना चाहता है ऐसे में वह उसकी देख रेख बहुत अच्छे से करेगा और वैदेही के समझाने पर वह इस बात से भी राजी हो ही जाएगी कि वैदेही को सच में इस रिश्ते को खत्म कर देना चाहिए। लेकिन अगले ही पल उसके आँखों के सामने वह दृश्य आया जब वह आर्थिक के साथ अपने घर पहुँची थी उसे अपने माता-पिता के चेहरे की मुस्कान याद आई, उसे याद आया कैसे वह दोनों जी जान लगाकर उन दोनों की आवभगत कर रहे थे ऐसे में वह अपने माता पिता को दुःखी नहीं कर सकती थी। एक ब्याही लड़की के घर से भाग जाने पर उसके माता-पिता को कितना अपयश झेलना पड़ता है इसबात को वह भलीभांति परिचित थी और वैसे भी वैदेही के मन में अब भी सागर के लिए वैसा कुछ नहीं था हाँ वह यह मानती थी कि शायद सागर पहले अपनी दिल की बात कह देता तो वह उसका बेहतर जीवनसाथी बन सकता था रही बात प्यार कि तो वह शादी के बाद हो जाता लेकिन अब तो वह आर्थिक की ब्यहाता थी और ऐसे में सागर के प्रति ऐसा सोचना भी उसके लिए पाप था, पर वह इस शादी को शादी भी तो नहीं मानती थी क्योंकि यह शादी उसके लिए छल है पर रश्म रिवाज उन सारी चीजों का क्या.. हजारों सवाल उसके मस्तिष्क में घूम रहे थे सारी बातों सोचते-सोचते उसके सिर में ऐसा भंयकर दर्द हुआ मानो अभी सिर फट जाए।

"अब यह सिर दर्द भी... लगता है आज जान जाकर रहेगा।",इतने में ही उसके फोन की दुबारा घंटी बजी इसबार भी सागर का फोन आ रहा था

हारकर वैदेही को कॉल पिक करना ही पड़ा "हेल्लो.."

"कहाँ हो तुम? घर पहुँच गई?"

"कौन सा घर?"

"तुम्हारा घर?"

"मेरा घर..सागर मेरा कौन सा घर है?"

"पागलों की तरह बातें मत करो, सीधे-सीधे बताओ ठीक ठाक पहुँच गई ना?"

"हाँ पहुँच ही गई हूँ।",उसने गहरा साँस लेते हुए कहा

"अच्छा फिर तेज हवा चलने की आवाज कहाँ से आ रही है?"

"शायद पंखे की आ रही हो, तुम ने ही तो कहा मैं लौट जाऊं तो लौट आई अब तो तुम खुश हो ना?"

"नहीं वैदेही जिस दिन तुम सच में खुश होगी उस दिन मैं भी खुश होऊंगा।"

"तुम मेरी इतनी फ्रिक क्यों करते हो?"

"अब तुम्हें मेरी फ्रिक से भी प्रॉब्लम है?"

"नहीं प्रॉब्लम नहीं है बस जानना चाहती हूँ कोई खास वजह"

"तुम कहना क्या चाहती हो"

"वही जो तुम कहना चाहते हो।"

"देखो मुझे लग रहा है तुम बहुत परेशान हो, सच बताओ कहाँ हो?"

"बीच सड़क पर...",कहते-कहते वैदेही का गला भर आया

"बीच सड़क पर क्या कर रही हो, मौसम खराब हो रहा है।"

"तुम कह रहे थे ना मैं लौट जाऊं अपने रिश्ते को समझने की कोशिश करूं, वही करने आई थी पर इन्होंने बीच सड़क पर मुझे ऐसा पटका जैसे मैं उनके घर का कचरा हूँ।"

"ठीक है तुम अपना लॉकेशन अभी सेंड करो, मैं अभी आ रहा हूँ।"

"नहीं तुम रहने दो, वैसे भी हमारा साथ रहना इनको नहीं भा रहा।"

"तुम कब से उनके बारे में सोचने लगी, मैं आ रहा हूँ तुम लॉकेशन भेजो अभी.."

"तुम्हें मेरी कसम है अगर तुम आए तो..."

सागर गाड़ी की चाबी लेकर निकला ही था कि वैदेही की कसम ने उसे रोक लिया। "क्या कह दिया तुम ने"

"अभी के बाद फोन मत करना, मैसेज पर ही हमारी बात होगी।"

"ठीक है.... तुम अपना ख्याल रखना।"

"हाँ....",कहते हुए वैदेही सागर का फोन कट करती है और वहीं एक पेड़ के नीचे जाकर बैठ जाती है

तेज बारिश शुरु हो चुकी थी बारिश इतनी तेज थी कि कुछ ही देर में वैदेही बुरी तरह से भींग गई थी वह बुरी तरह ठंड से कांप रही थी।

क्रमशः.........

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2 Comments

Gunjan Kamal

03-Jan-2023 12:38 PM

बेहतरीन भाग

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Varsha_Upadhyay

30-Dec-2022 05:15 PM

शानदार भाग

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